Saturday, June 18, 2016

अभी तक मेरे सफर का अंजाम यही है 
चल चल कर थक गया मगर मंज़िल का पता नहीं है 

दस्तक दी पहुँच कर मंज़िलों के दरों पर 
हर बार आवाज आयी तुम्हारा ठिकाना यहां नहीं है 

क्या खोया क्या पाया गिर कहीं उठा कहीं 
हिसाब करूँ क्या जब दर्द से अभी दामन भरा नहीं 

सपनो की तमन्ना में जाने नींद  कहाँ खो गयी 
कितनी रातें गुजर गयी और मैं सोया अभी नहीं है 

हर वक़्त लबों पर हंसी को सजा कर है रखता हूँ 
गिला है बस इतना की अश्कों से मेरा दामन भरा नहीं 

बरसों  गुजर गए ज़िन्दगी जीने की राह में 
नादान हैं हम जो ठहरे अभी तक नहीं 

कभी अपनी तो कभी सबकी सुनी है 
बस अपने दिल की आवाज अभी तक सुनी नहीं है 

पढोगे अगर गौर से तुम ये कविता कभी  
जान पाओगे वो दर्द मेरे दिल ने कभी कही नहीं है 

© Rakesh kumar June 2016