When my words were on the ground
My life was full of flowers all around
When my words were angry
I tortured my soul deeply
When my words were stone
I was standing alone
When my words were revolution
I was leading people billion
When my words were sweet
I was having meaningless tweet
When my words were high
I was always touching sky
When my words were softer
I never got the answer
When my words were dark
I only had momentarily spark
When my words were nice
I only attracted mice
When my words were scorn
I was walking with thorn
When my words were bold
I was left shivering with cold
When my words were judgemental
I never got to see what was actual
When my words were command
I never received my demand
When my words were innocent
I was treated as patient
When my words were request
I was always suppressed
When my words were sympathy
I was looked at awfully
When my words were touchy
I was labeled being cozy
When my words were honey coated
Ants and flies were only bred
When my words were love and affection
I never created desired attraction
When my words were for forgvieness
It created an impact endless
© Rakesh Kumar Sept. 2010
Sunday, September 26, 2010
काश्मीर के नौजवानों...
काश्मीर घाटी के नौजवानों आज मैं तुम से मुखातिब हूँ..
हाँ, अब तुम को आजादी चाहिए
बड़े हो गए हो तुम अब
कभी जिन पत्थरों से तुम बचपन मैं खेलते थे
आज उनको दूसरों पर फेकने की सामर्थ्य आ गयी है तुमको
कहाँ से आई ये ताकत, ये हिम्मत
उसी माँ के दूध को पी कर पिछले साठ सालो में तुम बड़े हुए हो
जिन पर तुम आज ये पत्थर उछाल रहे हो.
उसी माँ ने तुमको बड़ा किया, बचाया आतंकियों से, पडोसी लुटेरों से
कारगिल के वक्त तुम किधर छुप कर बैठे थे जब ये माँ गोलियाँ खा रही थी
कभी इस माँ ने डाट दिया, खाने में नमक ज्यादा डाल दिया तो
पत्थर फेकने लगे, आज तुम आज़ादी की बात कर रहे हो,
कब बंधन मैं थे तुम, पल दो पल माँ ने आँचल से तुम्हे ढँक दिया तो
तो तुम आज़ादी की बात करने लगे, माँ का आँचल जला दिया
आज तुमको उस आँचल से सांस लेने मैं तकलीफ होने लगी
तुमने कभी सोचा है जिस जमीं से संतूर की आवाज आती थी
अब वहाँ से पत्थरों के टकराने की आवाज क्यों आने लगी
कभी जहाँ की सुबह ओस की धुंध में डूबी रहती थी
वहाँ की शाम कब घर जलने के आग के धुए मैं घिर गयी
कभी तुमने सोचा की तुम्हारे जमीं के फूल कब जंगली हो गए
तुम्हारी घाटी के सेव के लाल रंग ऐसे नहीं हुए हैं
सालों हमने खून से सींचा है उस जमीं को तब उनको ये रंग आया है
और आज इन पर पत्थर उछालते हुए तुम्हारे हाथ नहीं काँप रहे हैं
इन घावों के लिए पीड़ा हमको भी है, हमारे खून मैं भी गुस्सा है,
लड़ना भी आता है हमको कविता लिखने के सिवा
© Rakesh Kumar Sept. 2010
हाँ, अब तुम को आजादी चाहिए
बड़े हो गए हो तुम अब
कभी जिन पत्थरों से तुम बचपन मैं खेलते थे
आज उनको दूसरों पर फेकने की सामर्थ्य आ गयी है तुमको
कहाँ से आई ये ताकत, ये हिम्मत
उसी माँ के दूध को पी कर पिछले साठ सालो में तुम बड़े हुए हो
जिन पर तुम आज ये पत्थर उछाल रहे हो.
उसी माँ ने तुमको बड़ा किया, बचाया आतंकियों से, पडोसी लुटेरों से
कारगिल के वक्त तुम किधर छुप कर बैठे थे जब ये माँ गोलियाँ खा रही थी
कभी इस माँ ने डाट दिया, खाने में नमक ज्यादा डाल दिया तो
पत्थर फेकने लगे, आज तुम आज़ादी की बात कर रहे हो,
कब बंधन मैं थे तुम, पल दो पल माँ ने आँचल से तुम्हे ढँक दिया तो
तो तुम आज़ादी की बात करने लगे, माँ का आँचल जला दिया
आज तुमको उस आँचल से सांस लेने मैं तकलीफ होने लगी
तुमने कभी सोचा है जिस जमीं से संतूर की आवाज आती थी
अब वहाँ से पत्थरों के टकराने की आवाज क्यों आने लगी
कभी जहाँ की सुबह ओस की धुंध में डूबी रहती थी
वहाँ की शाम कब घर जलने के आग के धुए मैं घिर गयी
कभी तुमने सोचा की तुम्हारे जमीं के फूल कब जंगली हो गए
तुम्हारी घाटी के सेव के लाल रंग ऐसे नहीं हुए हैं
सालों हमने खून से सींचा है उस जमीं को तब उनको ये रंग आया है
और आज इन पर पत्थर उछालते हुए तुम्हारे हाथ नहीं काँप रहे हैं
इन घावों के लिए पीड़ा हमको भी है, हमारे खून मैं भी गुस्सा है,
लड़ना भी आता है हमको कविता लिखने के सिवा
© Rakesh Kumar Sept. 2010
Thursday, September 23, 2010
तुम नहीं समझ पाओगे...
इस रचना के लिए मैं जयेन्द्र का आभारी हूँ और ये उसी को समर्पित करता हूँ. धन्यवाद जयेन्द्र..
लिख रहा हूँ कुछ पंक्तियाँ हर बार की तरह
तुम इसे भी नहीं पढ़ पाओगे मेरे प्यार की तरह
दिल के अरमान आज भी बेताब है पहले की तरह
मगर बरसों से लब खामोश हैं गुनाहगार की तरह
तुम्हारी खोज में खुद को समझने लगा हूँ खुदा की तरह
पैर के छाले भी ठंडक दे रहे हैं बर्फ के गोले की तरह
जिंदगी भी मेरी बन गयी है एक वेब पेज की तरह
हर हाइपरलिंक ले जा रहा है तुम्हारी तस्वीर की तरफ
क्यों जा के निकालूं अपने हलक का ये ज़हर
आदत हो गयी मुझ अब जीने की नीलकंठ की तरह
तुम्हारे दिए दिल के ज़ख्म आज भी हरे है बरसों पहले की तरह
कर्ज़दार हूँ इनका जो जीने की वजह बन गए हैं ये मेरे साँसों की तरह
हम तो हवाओं में बिखरे थे खुशबू की तरह
मुठी मैं कैद करने की कोशिस की तुमने एक जुगनू की तरह
खड़ा हूँ आज भी उस मोड पर मूर्ति की तरह
छोडा था जिस जगह हाथ मेरा तुमने एक अनजान की तरह
तुम्हारे लिए था मैं एक पुरानी किताब के एक पन्ने की तरह
साथ पावोगे आज भी तुम मुझे अपने परछाई की तरह
तुम्हारी प्यास बुझाने के लिए हम ठहरे रहे झील के पानी की तरह
चाहता तो मैं भी आकाश छू सकता था समुन्दर की लहरों की तरह
हर शाम तुम्हारी याद को भुलाया है हमने कुछ इस तरह
अपने आंशू भरे प्याले को पिया है हमने जाम की तरह
तुम तो मंदिर में आये थे एक खरीदार की तरह
खुद को सौंप डाला था हमने मगर भगवान के प्रसाद की तरह
दूर है किनारा अकेले चल पड़ा हूँ मैं मौजो की तरफ
मेरा हाल जानने के लिए आना होगा अब तुमको दरिया की तरफ
© Rakesh Kumar Sept. 2010
लिख रहा हूँ कुछ पंक्तियाँ हर बार की तरह
तुम इसे भी नहीं पढ़ पाओगे मेरे प्यार की तरह
दिल के अरमान आज भी बेताब है पहले की तरह
मगर बरसों से लब खामोश हैं गुनाहगार की तरह
तुम्हारी खोज में खुद को समझने लगा हूँ खुदा की तरह
पैर के छाले भी ठंडक दे रहे हैं बर्फ के गोले की तरह
जिंदगी भी मेरी बन गयी है एक वेब पेज की तरह
हर हाइपरलिंक ले जा रहा है तुम्हारी तस्वीर की तरफ
क्यों जा के निकालूं अपने हलक का ये ज़हर
आदत हो गयी मुझ अब जीने की नीलकंठ की तरह
तुम्हारे दिए दिल के ज़ख्म आज भी हरे है बरसों पहले की तरह
कर्ज़दार हूँ इनका जो जीने की वजह बन गए हैं ये मेरे साँसों की तरह
हम तो हवाओं में बिखरे थे खुशबू की तरह
मुठी मैं कैद करने की कोशिस की तुमने एक जुगनू की तरह
खड़ा हूँ आज भी उस मोड पर मूर्ति की तरह
छोडा था जिस जगह हाथ मेरा तुमने एक अनजान की तरह
तुम्हारे लिए था मैं एक पुरानी किताब के एक पन्ने की तरह
साथ पावोगे आज भी तुम मुझे अपने परछाई की तरह
तुम्हारी प्यास बुझाने के लिए हम ठहरे रहे झील के पानी की तरह
चाहता तो मैं भी आकाश छू सकता था समुन्दर की लहरों की तरह
हर शाम तुम्हारी याद को भुलाया है हमने कुछ इस तरह
अपने आंशू भरे प्याले को पिया है हमने जाम की तरह
तुम तो मंदिर में आये थे एक खरीदार की तरह
खुद को सौंप डाला था हमने मगर भगवान के प्रसाद की तरह
दूर है किनारा अकेले चल पड़ा हूँ मैं मौजो की तरफ
मेरा हाल जानने के लिए आना होगा अब तुमको दरिया की तरफ
© Rakesh Kumar Sept. 2010
Saturday, September 18, 2010
Meaning of Tears..
What name should I give to tears
Should I call them precious pearl
Or sweet as a innocent baby girl
Are they an early morning dew
Or result of undefined unknown view
Are they sign of bleeding heart
An output of strongest intention thwart
Or form of a crushed dream for many years
Resulted in those drops of tears
Unable to quenched after many cries
Is it the thirst of dried eyes
Are they because of suffering
Or beginning of our crumbling
Are they part of love
Comes when our feeling get shoved
Whether they expressed as victory
Or in defeat when we could not get agree
How to define and what words to say
What meaning tears have to display
© Rakesh Kumar Sept. 2010
Should I call them precious pearl
Or sweet as a innocent baby girl
Are they an early morning dew
Or result of undefined unknown view
Are they sign of bleeding heart
An output of strongest intention thwart
Or form of a crushed dream for many years
Resulted in those drops of tears
Unable to quenched after many cries
Is it the thirst of dried eyes
Are they because of suffering
Or beginning of our crumbling
Are they part of love
Comes when our feeling get shoved
Whether they expressed as victory
Or in defeat when we could not get agree
How to define and what words to say
What meaning tears have to display
© Rakesh Kumar Sept. 2010
At sea shore
Walked a distance to explore
Along the lonely sea shore
Making foot print on soft sand
I looked at red horizon expnad
Salty sea water cold and clean
Waves touching gently my feet
Far away where reaches my sight
I can see blue water kissing sky
Silence of the fallen tree
Defining a beastly beauty
Sensation of cold wind blowing
Singing of the birds flying
Never experienced feeling before
Nature beauty in its finest and pure
© Rakesh Kumar Sept. 2010
Along the lonely sea shore
Making foot print on soft sand
I looked at red horizon expnad
Salty sea water cold and clean
Waves touching gently my feet
Far away where reaches my sight
I can see blue water kissing sky
Silence of the fallen tree
Defining a beastly beauty
Sensation of cold wind blowing
Singing of the birds flying
Never experienced feeling before
Nature beauty in its finest and pure
© Rakesh Kumar Sept. 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)