Sunday, September 26, 2010

My words...

When my words were on the ground
My life was full of flowers all around

When my words were angry
I tortured my soul deeply

When my words were stone
I was standing alone

When my words were revolution
I was leading people billion

When my words were sweet
I was having meaningless tweet

When my words were high
I was always touching sky

When my words were softer
I never got the answer

When my words were dark
I only had momentarily spark

When my words were nice
I only attracted mice

When my words were scorn
I was walking with thorn

When my words were bold
I was left shivering with cold

When my words were judgemental
I never got to see what was actual

When my words were command
I never received my demand

When my words were innocent
I was treated as patient

When my words were request
I was always suppressed

When my words were sympathy
I was looked at awfully

When my words were touchy
I was labeled being cozy

When my words were honey coated
Ants and flies were only bred

When my words were love and affection
I never created desired attraction

When my words were for forgvieness
It created an impact endless


© Rakesh Kumar Sept. 2010

काश्मीर के नौजवानों...

काश्मीर घाटी के नौजवानों आज मैं तुम से मुखातिब हूँ..

हाँ, अब तुम को आजादी चाहिए
बड़े हो गए हो तुम अब
कभी जिन पत्थरों से तुम बचपन मैं खेलते थे
आज उनको दूसरों पर फेकने की सामर्थ्य आ गयी है तुमको
कहाँ से आई ये ताकत, ये हिम्मत
उसी माँ के दूध को पी कर पिछले साठ सालो में तुम बड़े हुए हो
जिन पर तुम आज ये पत्थर उछाल रहे हो.
उसी माँ ने तुमको बड़ा किया, बचाया आतंकियों से, पडोसी लुटेरों से
कारगिल के वक्त तुम किधर छुप कर बैठे थे जब ये माँ गोलियाँ खा रही थी
कभी इस माँ ने डाट दिया, खाने में नमक ज्यादा डाल दिया तो
पत्थर फेकने लगे, आज तुम आज़ादी की बात कर रहे हो,
कब बंधन मैं थे तुम, पल दो पल माँ ने आँचल से तुम्हे ढँक दिया तो
तो तुम आज़ादी की बात करने लगे, माँ का आँचल जला दिया
आज तुमको उस आँचल से सांस लेने मैं तकलीफ होने लगी

तुमने कभी सोचा है जिस जमीं से संतूर की आवाज आती थी
अब वहाँ से पत्थरों के टकराने की आवाज क्यों आने लगी
कभी जहाँ की सुबह ओस की धुंध में डूबी रहती थी
वहाँ की शाम कब घर जलने के आग के धुए मैं घिर गयी
कभी तुमने सोचा की तुम्हारे जमीं के फूल कब जंगली हो गए

तुम्हारी घाटी के सेव के लाल रंग ऐसे नहीं हुए हैं
सालों हमने खून से सींचा है उस जमीं को तब उनको ये रंग आया है
और आज इन पर पत्थर उछालते हुए तुम्हारे हाथ नहीं काँप रहे हैं
इन घावों के लिए पीड़ा हमको भी है, हमारे खून मैं भी गुस्सा है,
लड़ना भी आता है हमको कविता लिखने के सिवा

© Rakesh Kumar Sept. 2010

Thursday, September 23, 2010

तुम नहीं समझ पाओगे...

इस रचना के लिए मैं जयेन्द्र का आभारी हूँ और ये उसी को समर्पित करता हूँ. धन्यवाद जयेन्द्र..

लिख रहा हूँ कुछ पंक्तियाँ हर बार की तरह
तुम इसे भी नहीं पढ़ पाओगे मेरे प्यार की तरह

दिल के अरमान आज भी बेताब है पहले की तरह
मगर बरसों से लब खामोश हैं गुनाहगार की तरह

तुम्हारी खोज में खुद को समझने लगा हूँ खुदा की तरह
पैर के छाले भी ठंडक दे रहे हैं बर्फ के गोले की तरह

जिंदगी भी मेरी बन गयी है एक वेब पेज की तरह
हर हाइपरलिंक ले जा रहा है तुम्हारी तस्वीर की तरफ

क्यों जा के निकालूं अपने हलक का ये ज़हर
आदत हो गयी मुझ अब जीने की नीलकंठ की तरह

तुम्हारे दिए दिल के ज़ख्म आज भी हरे है बरसों पहले की तरह
कर्ज़दार हूँ इनका जो जीने की वजह बन गए हैं ये मेरे साँसों की तरह

हम तो हवाओं में बिखरे थे खुशबू की तरह
मुठी मैं कैद करने की कोशिस की तुमने एक जुगनू की तरह

खड़ा हूँ आज भी उस मोड पर मूर्ति की तरह
छोडा था जिस जगह हाथ मेरा तुमने एक अनजान की तरह

तुम्हारे लिए था मैं एक पुरानी किताब के एक पन्ने की तरह
साथ पावोगे आज भी तुम मुझे अपने परछाई की तरह

तुम्हारी प्यास बुझाने के लिए हम ठहरे रहे झील के पानी की तरह
चाहता तो मैं भी आकाश छू सकता था समुन्दर की लहरों की तरह

हर शाम तुम्हारी याद को भुलाया है हमने कुछ इस तरह
अपने आंशू भरे प्याले को पिया है हमने जाम की तरह

तुम तो मंदिर में आये थे एक खरीदार की तरह
खुद को सौंप डाला था हमने मगर भगवान के प्रसाद की तरह

दूर है किनारा अकेले चल पड़ा हूँ मैं मौजो की तरफ
मेरा हाल जानने के लिए आना होगा अब तुमको दरिया की तरफ


© Rakesh Kumar Sept. 2010

Saturday, September 18, 2010

Meaning of Tears..

What name should I give to tears
Should I call them precious pearl
Or sweet as a innocent baby girl

Are they an early morning dew
Or result of undefined unknown view

Are they sign of bleeding heart
An output of strongest intention thwart
Or form of a crushed dream for many years
Resulted in those drops of tears

Unable to quenched after many cries
Is it the thirst of dried eyes

Are they because of suffering
Or beginning of our crumbling

Are they part of love
Comes when our feeling get shoved

Whether they expressed as victory
Or in defeat when we could not get agree

How to define and what words to say
What meaning tears have to display


© Rakesh Kumar Sept. 2010

At sea shore

Walked a distance to explore
Along the lonely sea shore

Making foot print on soft sand
I looked at red horizon expnad

Salty sea water cold and clean
Waves touching gently my feet

Far away where reaches my sight
I can see blue water kissing sky

Silence of the fallen tree
Defining a beastly beauty

Sensation of cold wind blowing
Singing of the birds flying

Never experienced feeling before
Nature beauty in its finest and pure

© Rakesh Kumar Sept. 2010