हाँ मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ
(C) राकेश कुमार Jan 2012
जब सर्दी की रातों मैं एक गरीब सड़क पर सोता है
भूख के वजह से एक गरीब का बच्चा रोता है
जब दहेज़ के लिए एक औरत की बली दी जाती है
तन ढकने के लिए नारी की साडी छोटी हो जाती है
हाँ तब मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ
जब एक छोटा बच्चा होटल में टेबल साफ़ करता है
जब एक किसान को आत्महत्या करना पड़ता है
जब भूख से एक तरफ इंसान मरता है
सरकारी गोदाम में लाखों का अनाज सड़ता है
हाँ तब मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ
जब दूर गाँव में एक प्रेमी की हत्या होती है
अदालत में सबके सामने झूठ की जय होती है
समाज मैं एक इंसान सच बोलने से डरता है
जब सबकी आँखों के सामने एक इंसान मरता है
पुलिस और प्रशासन चैन की नीद सोती है
हाँ तब मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ
जब एक बुढ़िया का जवान बेटा छीन जाता है
एक नारी की इज्जत सरे आम लुट जाती है
जब शिक्षा का खुलकर व्यापार होता है
और एक गुंडे का आदर और सत्कार होता है
हाँ तब मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ
जब धर्म के नाम पर लोग जानवर बन जाते है
जब धर्म के नाम पर लोग जानवर बन जाते है
जब इंसानी रिश्तों के मोल कम हो जाते है
जब आधुनिकता के दौड़ मैं लोग अंधे हो जाते है
टीवी चैनल पर लोग पैसे के लिए नंगे हो जाते है
हाँ तब मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ
जब देश के नेता की नीयत मैली होती है
भ्रस्टाचार के नाम पर हर रोज रैली होती है
जब देश का युवक अपनी जवानी मैं थक जाता है
सच्चे दामन पर एक बदनुमा दाग लग जाता है
हाँ तब मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ
एक नए परिवर्तन की नीव रखना चाहता हूँ
हाँ मैं एक और नयी कविता लिखना चाहता हूँ
(C) राकेश कुमार Jan 2012
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