डरता हूँ मैं
हर पल, हर समय डरता हूँ मैं
अकेलेपन से डरता हूँ
और भीड़ से भी डरता हूँ मैं
और भीड़ से भी डरता हूँ मैं
कमरे में डरता हूँ मैं
और कमरे के बाहर भी डरता हूँ मैं
आशुओं से डरता हूँ मैं
और खुशिओं से भी डरता हूँ
ख़ामोशी से डरता हूँ और शोर भी डरता हूँ मैं
सच से भी डरता हूँ मैं, और झूठ से भी
बीते कल से डरता हूँ मैं
और आने वाले कल से भी
बच्चे के रोने से डरता हूँ
बॉस के डाँटने डरता हूँ
बॉस के डाँटने डरता हूँ
बीवी के बोलने से डरता हूँ
और उसके चुप रहने से भी डरता हूँ मैं
पता नही और भी किन किन चीजो डरता हूँ मैं
पता नही और भी किन किन चीजो डरता हूँ मैं
आइने को देख कर डरता हूँ
ना देखूं तब भी डरता हूँ मैं
अपनों से डरता हूँ और अंजानो से डरता हूँ मैं
किन किन चीजों से डरा नहीं हूँ मैं
पता नहीं अब जिंदा भी हूँ या मरा हूँ मैं
सांस के चलने से भी तो डरता हूँ मैं
ज़िन्दगी जीने से भी डरता हूँ
और मरने से भी डरता हूँ मैं
और मरने से भी डरता हूँ मैं
डरता हूँ मैं, पल पल, हर पल
डरता हूँ, मगर फिर भी आगे बढ़ता हूँ मैं
(C) Rakesh Kumar Dec. 2012
(C) Rakesh Kumar Dec. 2012
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