कुछ और पा लेने की ये चाह क्या है
जिंदगी में एक और नयी कमी का ये एहसास क्या है
क्या ये कमी मन की बस एक छोटी चाह है
या पर कटे परिंदों की एक नयी उड़ान है
हो सकती है ये चाह किसी मंजिल की राह नयी
जिंदगी को फिर से हो मंजूर भटकना कहीं
क्या ये चाह है एक और नया निर्माण
या एक बुझ चुके जीवन का एक नया प्राण
क्या इसमें मुझे एक बार फिर से जलना होगा
एक नए तरीके से खुद को बदलना होगा
इस एक और चाह का क्या है कोई अंत
जिंदगी में कहाँ से लाऊं एक और नया संकल्प
कैसी है ये चाह, अबुझ और अथाह
कहीं हैं इसके बुझने की कोई आस
क्या इसे भी कह दूं घुटन, अकुलाहट और मजबूरी
रख दूँ उन कामनाओं में जो नहीं हो सकीं कभी पूरी
या इसको भी बहलाऊँ देकर एक नया आश्वासन
क्या फर्क पड़ जायेगा अगर एक बार और टूट जायेगा ये मन
© राकेश कुमार March 2013
जिंदगी में एक और नयी कमी का ये एहसास क्या है
क्या ये कमी मन की बस एक छोटी चाह है
या पर कटे परिंदों की एक नयी उड़ान है
हो सकती है ये चाह किसी मंजिल की राह नयी
जिंदगी को फिर से हो मंजूर भटकना कहीं
क्या ये चाह है एक और नया निर्माण
या एक बुझ चुके जीवन का एक नया प्राण
क्या इसमें मुझे एक बार फिर से जलना होगा
एक नए तरीके से खुद को बदलना होगा
इस एक और चाह का क्या है कोई अंत
जिंदगी में कहाँ से लाऊं एक और नया संकल्प
कैसी है ये चाह, अबुझ और अथाह
कहीं हैं इसके बुझने की कोई आस
क्या इसे भी कह दूं घुटन, अकुलाहट और मजबूरी
रख दूँ उन कामनाओं में जो नहीं हो सकीं कभी पूरी
या इसको भी बहलाऊँ देकर एक नया आश्वासन
क्या फर्क पड़ जायेगा अगर एक बार और टूट जायेगा ये मन
© राकेश कुमार March 2013
No comments:
Post a Comment