अब ना वो दिल मेरे पास है न वो दर्द
अब नहीं रहा मेरे पास कुछ आजमाने को
अब न वो जाम है न पीने पिलाने वाले
खाली पैमाने लिए बैठा रहता हूँ याद कर के पुराने अफसानों को
ना पीने का मन था न पिलाने की तमन्ना
आया था बस महखाने की रौनकें बढ़ाने को
बर्षों गुजर गए इस दिल को समझाने में
क्यों सिर्फ हमी बुरे लगे इस ज़माने को
कोई पूछे तो फिर भी नही है मेरे पास कुछ समझाने को
थक गया हूँ मगर फिर भी चलता रहता हूँ
मज़िल है बहुत दूर और समय नहीं है सुस्ताने को
कोरे कागजो का इस्तेमाल किया मैंने अपने अश्कों को सुखाने में
जब शब्द नहीं मिले मुझे कबिता बनाने को
© Rakesh Kumar Oct. 2015
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