नदी का किनारा वो पीपल के पेड़ के नीचे की मस्ती
बुला रही वो खेती खलियानों की बस्ती
वो गांव की वो पुरानी यादों की मस्ती
बस रही इन जूतों में अब एक कांटों की बस्ती
जब की कभी इन नंगे पावों में होती थी उड़ने की मस्ती
शहर तो बना हुआ है एक खेलो खिलोनो की बस्ती
पर आज भी याद आ रही है वो कागज की कश्ती
कहां है वो गांव की हवा और बगीचों की मस्ती
ये घर अब लग रहा बस एक है पथरों की बस्ती
छुट गया वो गांव और अब उड़ गई है नीद की बस्ती
कहां से जाकर लाऊं अब मां के हाथों की थपकी
जीने में खो गई है उन लम्हों की मस्ती
'राकेश' अपना अब ठिकाना है ये रंजो गमों की बस्ती
© Rakesh kumar June 2022
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