अभी तक मेरे सफर का अंजाम यही है
चल चल कर थक गया मगर मंज़िल का पता नहीं है
दस्तक दी पहुँच कर मंज़िलों के दरों पर
हर बार आवाज आयी तुम्हारा ठिकाना यहां नहीं है
क्या खोया क्या पाया गिर कहीं उठा कहीं
हिसाब करूँ क्या जब दर्द से अभी दामन भरा नहीं
सपनो की तमन्ना में जाने नींद कहाँ खो गयी
कितनी रातें गुजर गयी और मैं सोया अभी नहीं है
हर वक़्त लबों पर हंसी को सजा कर है रखता हूँ
गिला है बस इतना की अश्कों से मेरा दामन भरा नहीं
बरसों गुजर गए ज़िन्दगी जीने की राह में
नादान हैं हम जो ठहरे अभी तक नहीं
कभी अपनी तो कभी सबकी सुनी है
बस अपने दिल की आवाज अभी तक सुनी नहीं है
पढोगे अगर गौर से तुम ये कविता कभी
जान पाओगे वो दर्द मेरे दिल ने कभी कही नहीं है
© Rakesh kumar June 2016
चल चल कर थक गया मगर मंज़िल का पता नहीं है
दस्तक दी पहुँच कर मंज़िलों के दरों पर
हर बार आवाज आयी तुम्हारा ठिकाना यहां नहीं है
क्या खोया क्या पाया गिर कहीं उठा कहीं
हिसाब करूँ क्या जब दर्द से अभी दामन भरा नहीं
सपनो की तमन्ना में जाने नींद कहाँ खो गयी
कितनी रातें गुजर गयी और मैं सोया अभी नहीं है
हर वक़्त लबों पर हंसी को सजा कर है रखता हूँ
गिला है बस इतना की अश्कों से मेरा दामन भरा नहीं
बरसों गुजर गए ज़िन्दगी जीने की राह में
नादान हैं हम जो ठहरे अभी तक नहीं
कभी अपनी तो कभी सबकी सुनी है
बस अपने दिल की आवाज अभी तक सुनी नहीं है
पढोगे अगर गौर से तुम ये कविता कभी
जान पाओगे वो दर्द मेरे दिल ने कभी कही नहीं है
© Rakesh kumar June 2016
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