Tuesday, September 11, 2012

के बी सी...

एक शाम सोफा पर बैठ कर मैंने बहुत सोचा 
क्या चीजें हैं जिन्होनें मुझे आगे बढ़ने से रोका
बहुत ही गहरा मैने किया चिंतन और मनन 
लिस्ट बनाता हूँ कि किस-2 की करूँ मैं आज माँ बहन 
कहाँ कहा जा के निकलूं इस दिल का गुबार 
इतना पीटू की आ जाये कमीनो को बुखार
शुरुआत करता हूँ देश की दशा पर 
बरसों से दिए जा रहे इसकी सजा पर 
किसको सजा दूं कौन है  इसका दोषी
नेता पब्लिक, सिस्टम, या है इसकी बुरी किस्मत
ये सब तो कहता है मेरे पड़ोस का मोची 
साब, कुछ भी हो अपनी तो चल रही है रोजी रोटी 
देश तो जायेगा ही गड्ढे में 
कोयला और आयरन माइनस जो सब खोद रहे हैं 
क्यों न हम भी इसमें कूद कर देश को बचाए 
कुछ नहीं तो दो चार बाल्टी ही चुरा कर लायें 
देश के बारे में तो सभी जगह हो रही है चिंता और बहस 
मेरे सोचने से नहीं पड़ेगा इसमें कोई नया रस 
ये ही सोच कर ध्यान लगाया अपने नौकरी पर 
क्या करें किधेर जाये और कितना कमाए 
दो चार हजार  की नौकरी से क्या मिला 
मेरी तनख्वाह से तो बीवी को भी है गिला 
सोच रहा हूँ कैसे लायें इसमें बदलाव 
कुछ ऐसा करें जिससे जल जाये मेरी किस्मत का अलाव 
क्यों न के बी सी पर जा कर खेले एक  दाव
देश भर में होंगे मेरे चर्चे
सारी उम्र के पुरे हो जायेंगे मेरे खर्चे
साथ में बिग बी से मिलना होगा एक बोनस
और जिंदगी से दूर होगी बॉस की खुन्नस  
यही सोच कर मैने फ़ोन की तरफ हाथ बढ़ाया 
और के बी सी का नंबर घुमाया 
उधर से आई एक मीठी आवाज 
के बी सी की फ़ोन लाइन बंद है आज
तो भैया ये प्लान भी हो गया फेल
किस्मत की टूटी पटरी पर भला कैसे चलती अपनी रेल
सोचा क्यों न बच्चन सर जी को अपना दुखड़ा सुनाये
ट्वीटर पर जाकर ये पोस्ट चिपकाये
शायद उनको मुझ पर कुछ दया आ जाये
के बी सी में मेरा भी कुछ जुगाड़ फिट हो जाये

(C) Rakesh Kumar Sep. 2012

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