Wednesday, June 29, 2022

हासिल...

जाने कितने टूटे हुए लम्हो का अंजाम हैं हम
और दुनिया ये समझती है की बहुत आबाद है हम

क्या गीनू की कितनी खुशी और गम में जीते हैं हम 
जब हर वक्त हमको हमारी पलके मिलती हैं नम 

कभी झुठे तो कभी खुद को सच्चे लगते हैं हम 
और खुदी से ही लड़ कर खुद से ही हारते हैं हम 

जीने की क्या सुनाएं अब अपनी दास्तान तुमको हम 
जब अब तक नहीं बोले पाए जिंदगी की भाषा हम 

मरते हुए लम्हो के जीने में हमको मिला ही क्या 'राकेश'
कल भी बरबाद थे और आज भी हमको बरबाद मिले हैं हम

June 2022

Saturday, June 11, 2022

आगाज़..

कैसे करू आज इस दिन का आगाज़ 
काश छुपा लूं इस मुठी में नीला आकाश

आशमां से आगे है उस मज़िल की पुकार 
की आ जाओ उमीदों के उड़न खटोले पर होकर सवार 

हम और तुम जैसे अंबर और आकाश 
हो जाए आलिंगन तो मिले जिंदगी की मंजिल को आधार 

हो जिंदगी के हर एक पल इतने रुमानी 
की कामयाबी के हर कदम पर लिखू एक नई कहानी

© Rakesh Kumar June 2022


मस्ती की बस्ती...

कहां खो गई मेरे सपनों की बस्ती
नदी का किनारा वो पीपल के पेड़ के नीचे की मस्ती

बुला रही वो खेती खलियानों की बस्ती
वो गांव की वो पुरानी यादों की मस्ती

बस रही इन जूतों में अब एक कांटों की बस्ती 
जब की कभी इन नंगे पावों में होती थी उड़ने की मस्ती

शहर तो बना हुआ है एक खेलो खिलोनो की बस्ती
पर आज भी याद आ रही है वो कागज की कश्ती

कहां है वो गांव की हवा और बगीचों की मस्ती 
ये घर अब लग रहा बस एक है पथरों की बस्ती
 
छुट गया वो गांव और अब उड़ गई है नीद की बस्ती
कहां से जाकर लाऊं अब मां के हाथों की थपकी 

जीने में खो गई है उन लम्हों की मस्ती 
'राकेश' अपना अब ठिकाना है ये रंजो गमों की बस्ती 

 © Rakesh kumar June 2022