Sunday, January 15, 2012

हाँ मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ

हाँ मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ 

जब सर्दी की रातों मैं एक गरीब सड़क पर सोता है 
भूख के वजह से एक गरीब का बच्चा रोता है 
जब दहेज़ के लिए एक औरत की बली दी जाती है 
तन ढकने के लिए नारी की साडी छोटी हो जाती है
हाँ तब मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ

जब एक छोटा बच्चा होटल में टेबल साफ़ करता है
जब एक किसान को आत्महत्या करना पड़ता है
जब भूख से एक तरफ इंसान मरता है 
सरकारी गोदाम में लाखों का अनाज सड़ता है 
हाँ तब मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ

जब दूर गाँव में एक प्रेमी की हत्या होती है 
अदालत में सबके सामने झूठ की जय होती है 
समाज मैं एक इंसान सच बोलने से डरता है
जब सबकी आँखों के सामने एक इंसान मरता है  
पुलिस और प्रशासन चैन की नीद सोती है 
हाँ तब मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ

जब एक बुढ़िया का जवान बेटा छीन जाता है 
एक नारी की इज्जत सरे आम लुट जाती है
जब शिक्षा का खुलकर व्यापार होता है 
और एक गुंडे का आदर और सत्कार होता है  
हाँ तब मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ


जब धर्म के नाम पर लोग जानवर बन जाते है 
जब इंसानी रिश्तों के मोल कम हो जाते है
जब आधुनिकता के दौड़ मैं लोग अंधे हो जाते है 
टीवी चैनल पर लोग पैसे के लिए नंगे हो जाते है  
हाँ तब मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ

जब देश के नेता की नीयत मैली होती है 
भ्रस्टाचार के नाम पर हर रोज रैली होती है
जब देश का युवक अपनी जवानी मैं थक जाता है 
सच्चे दामन पर एक बदनुमा दाग लग जाता है 
हाँ तब मैं एक नयी कविता लिखना चाहता हूँ 
एक नए परिवर्तन की नीव रखना चाहता हूँ 

हाँ मैं एक और नयी कविता लिखना चाहता हूँ

(C) राकेश कुमार Jan 2012

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