Sunday, June 03, 2012

कहाँ है सत्य...

कहाँ है सत्य, क्या है सत्य,
कैसा है ये, किधर है ये
क्या कभी पाया है मैने इसे, जाना है कभी इसे मैने
क्या ये उन पुस्तकों में था जिनको मैने पढ़ा
या ये था उन कविताओं में जिनको मैंने लिखा
क्या ये उन दृश्यों में था जिनको मैने देखा
या ये उन भावनाओं में था जिनको मैने महसूस किया
क्या ये उन शब्दों का रूप था जिनको मैंने कहा, सुना
या मेरी खामोशी के वक़्त मौन बन कर ये मेरे ही अन्दर समाया था
क्या ये मेरे पास था जब मैं जाग रहा था
या ये तब था जब मैं सो रहा था
क्या ये वो था जो मेरी इन्द्रियों ने मुझे बताया
या ये वो था जो मैं कभी जान ही नहीं पाया
क्या उन पलों में था जिनमे मैं जीवंत था
या उनमे में जब मैं मृत्यु के करीब था
क्या ये मेरे अनुभवों में अवतरित था
या मेरे लड़कपन में अंकुरित था
क्या सत्य मेरे आंशुओं का ही एक रूप था
या मेरे मुस्कराहटों का ही एक हिस्सा था
क्या ये मुझे मिला था जब मैं सफलता के शिखर पर था
या मेरा हमसफ़र था जब मैं असफलता से जूझ रहा था
क्या ये मेरे मंजिलों के रास्तों में पड़ा हुआ था
या खुद मंजिल बन कर ही मेरे सामने खड़ा था
कहाँ था सत्य, किस वेश में था ये
क्या ये तब था जब मैं अकेला था
या तब जब तुम मेरे पास थे
कहाँ है सत्य, कब था सत्य
क्या कभी मैंने पाया है इसे
कभी जाना है इसे...


(C) Rakesh Kumar June 2012

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