Monday, August 06, 2012

चलो इसी बहने तो हम जाने गए
क्या हुआ जो बरसो पुराने दोस्ताने गए

क्या हुआ जो आज उन्होंने ने खंजर उठा लिया
इस बहाने कम से कम शब्दों के वीराने तो गए

मेरी बारात नहीं पहुंची उसकी गली तक तो क्या हुआ
ये क्या कम है जो उसकी गली में मेरे अफसाने गए

हमारी सांस रुक गयी तो भी कोई देखने न आया
वो दो शब्द कम क्या बोले सब लोग उनको मनाने गए

भुला दिया था कब का उन्होंने मुझे एक लम्हा समझ कर
पर मेरे जिंदगी के कई बर्ष उनको भुलाने मैं गए

आज भी दरवाजे पर वो माएं राह देखती होगी
बरसो पहले जिनके जवान बेटे शहर में कमाने गए

महंगे सपने देखने की कोशिश तो की थी हमने
पर तमाम जिंदगी मेरी उसकी कीमत चुकाने में गए

ज़िन्दगी की दौड़ मैं थक कर जब मैंने बंद कर ली आँखें
फिर कभी नहीं उठा जब लोग हमे जगाने गए

और क्यों नहीं लिख पाया इसका क्या जवाब दू
बस जोर की लगी थी और हम पाखाने गए

(C) Rakesh Kumar

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