Sunday, October 13, 2013

मिला था सत्य मुझे...


ऐसा तो नहीं की सत्त्य को पाया नहीं मैने
मिला था सत्य मुझे  कई बार, बार, बार

कभी ये था मेरे ख़ामोशी में था और कभी ये मेरे झल्लाहट में
कभी ये मेरे उन आंसुओं में जो आँखों से नहीं निकल सके
तो कभी ये उन अनकहे सब्दो में भी था जिनको कोई सुन नहीं सका

मिला था सत्य मुझे कई बार, बार, बार
कभी ये उन पलों में था जिन में मैं, मैं नहीं था
और ये उस समय भी था जब सिर्फ मैं ही, मैं था कोई और नही

कभी ये था जब  मुझे सारा जग जीता हुआ लगा था
और कभी ये था जब खोने के लिए कुछ मेरे पास कुछ नहीं था
ये तो  तब भी था जब मेरे पास सिर्फ सवाल ही सवाल थे
और ये इसे तब भी मैने पाया था जब मैं अनुतरित  था

मिला था सत्य मुझे कई बार, बार, बार
इसे मैने  घने अंधेरों में भी पाया था
और उस रौशनी में भी जिसमे मैंने कुछ भी देख नहीं पाया था
ये मेरे विश्वास में भी मिला था और मेरे संदेह में भी मिला था
कभी ये मेरे पूर्णता में था तो कभी मेरे बिखरने में

मिला था सत्य मुझे कई बार, बार, बार
ये आया था मेरे यादों के आइने में
और कुछ भुलाने की कशमकश  में भी 
ये कभी बचपन की कहानियों में के रूप में था 
तो उन सपनो के रूप में भी जो हकीकत से टकरा के चूर हो गए थे
और था उन अंतरात्मा के शब्दों में जिनको मैंने अनसुना कर  दिया था
और पड़ा था मेरे उन मंजिलों के रास्तों में जिन तक मैं कभी पहुँच नहीं पाया

और भी कई रूपों में मिला था सत्य मुझे, कई बार, बार
कई बार मिला था ये मुझे बिखरे हुए कई टुकडो में
पड़ा हुआ निरीह और लाचार कोई पूछने वाला भी नहीं था इसको
और मैंने भी कई बार इसे पहचनाने से इनकार कर दिया था।

(C) Rakesh Kumar  Oct. 2013.

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