Thursday, December 27, 2012

बीता साल...


नया साल आने का कुछ तो है जश्न
पुराना साल बीतने की भी कुछ ख़ुशी है और कुछ गम
बीते साल का अब हम क्या दें हिसाब
जब शब्दों के रूप नहीं धर सकते हमारे जवाब 

मलाल इसका नहीं की इस साल जीने में थे बहुत गम 
ख़ुशी थी या गम बस हर वक़्त मेरी पलकें थी नम
कभी कुछ कम मिला था और कभी कुछ ज्यादा  
कुछ पल जिंदगी नमकीन थी और कुछ पल सादा
कभी कुछ उम्मीदें थी और कभी कुछ निराशा

कुछ पल हकीकत थे और कुछ पल धोखा
इतनी सालों बाद भी हमने जीना नहीं सीखा 
कोयले को हीरा समझ कर हमने तराशा 
अपनी ही नाकामी थी दूसरों को दोष क्या देता 
जब हम नहीं समझ सकते जिंदगी जीने की भाषा 

कभी हम झूठे थे और कभी हम सच्चे
एक और साल गुजरने के बाद भी हम रह गए कच्चे
कभी खुद से ही लड़ा और कभी खुद से ही हारा
इसी संघर्ष में है इस वर्ष जीने का सारांश सारा   

मन के कमरे की दीवारे आज भी कुछ सुनी सी हैं 
जाने कैसे कैसे एहसासों को जोड़ कर हमने ये पंक्तियाँ बुनी हैं 
यह साल भी गुजर गया जिंदगी को कुछ और सुलझाने में
कभी खुद को समझाने में और कभी खुद को भुलाने में
कुछ हकीकत और सपने के अंतर को जानने में
कभी खुद को यकीन दिलाने में और कभी खुद को थोडा मारने में...

© Rakesh Kumar Dec. 2012

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