Saturday, March 23, 2013

एक और चाह...

कुछ और पा लेने की ये चाह क्या है 
जिंदगी में एक और नयी कमी का ये एहसास क्या है 
क्या ये कमी मन की बस एक छोटी चाह है 
या पर कटे परिंदों की एक नयी उड़ान है 
हो सकती है ये चाह किसी मंजिल की राह नयी
जिंदगी को फिर से हो मंजूर भटकना कहीं
क्या ये चाह है एक और नया निर्माण  
या एक बुझ चुके जीवन का एक नया प्राण 
क्या इसमें मुझे एक बार फिर से जलना होगा 
एक नए तरीके से खुद को बदलना होगा 
इस एक और चाह का क्या है कोई अंत
जिंदगी में कहाँ से लाऊं एक और नया संकल्प
कैसी है ये चाह, अबुझ और अथाह  
कहीं हैं इसके बुझने की कोई आस 
क्या इसे भी कह दूं घुटन, अकुलाहट और मजबूरी 
रख दूँ उन कामनाओं में जो नहीं हो सकीं कभी पूरी 
या इसको भी बहलाऊँ देकर एक नया आश्वासन 
क्या फर्क पड़ जायेगा अगर एक बार और टूट जायेगा ये मन 

© राकेश कुमार  March 2013

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