Saturday, May 19, 2012

वो शाम बेच दी...

ज़िन्दगी को जीने में
क्या क्या बेचा मैने
कितनो का रखूं हिसाब
लाभ का था ये नुक्सान का सौदा
किसको दूं जवाब
सुबहे बेच दी वो शामे बेच दी
दिन बेच दिया वो रात बेच दी
रखता हूँ हिसाब कुछ उन शामों को
जिनको बेच चूका हूँ में जीने की राहों में
वो एक मैदान में क्रिकेट खेलने की शाम
और एक गिल्ल्ली डंडा खेलने की शाम
वो stadiam में हाकी खेलने की शाम
और अँधेरा हो जाने पर डर कर घर आने की शाम
वो स्कूल से घर लौट आने की शाम
और माँ के हाथों से खाना खाने की शाम
वो फूटबाल के पीछे दौडने की शाम
वो नदियों के पानी में कूदने की शाम
वो गलिओं में अँधेरे से डरने की शाम
और लोगों से मिलने मिलाने की शाम
वो ढेरों किस्सों और कहानियों की शाम
और बैठ कर सब के साथ बिताने की शाम
वो ढोल नगाड़े और उमंगो की शाम
और अंधेरों में पढने की शाम
वो पलकों के बोझिल हो जाने की शाम
और ठण्ड में अलाव के पास बैठने की शाम
वो चूल्हे की धुएं से आँख जलने की शाम
वो दूर बागीचे के पीछे सूरज के छुपने की शाम
वो यादों की शाम, वो भूलने की शाम
वो ढेरों सुनहरे सपनो की शाम
और भी जाने कितनी शामें बीच दी मैने
ज़िन्दगी के जीने में
की आज आ गयी है मेरी ज़िन्दगी की शाम
आज सोचता हूँ कैसे बेचूं इसे
अपनी ज़िन्दगी की ये आखरी शाम...

(C) Rakesh Kumar May 2012

No comments: