Sunday, July 11, 2010

एक हंसी...

जाने क्यों अतीत के परिंदे फिर से फड़फड़ाने लगे,
आज जब बरसों बाद देखी उसकी तस्वीर फेसबुक पर
बहुत पहले ही मैं उन परिंदों के पर काट चुका था
आज भी उसके चेहरे पर वही सुन्दरता झलक रही थी
हाँ वही थी वो, आज हँसते हुए, मुस्कराते हुए
उसी हंसी के साथ जो कभी खोजने की कोशिश की थी मैंने
हाँ बहुत कुछ देने का वादा भी किया था उसने
सिवाए एक हंसी के, जो वो मुझे कभी नहीं दे पाई
कुछ आंसु जो उसने मेरे पहलु पर टपकाए थे
आज भी गीलेपन का अहसास होता है उन आंशुओं से
सोचता था एक दिन मैं उनको मिटा दूंगा, सुखा दूंगा
भूल गया था की कब का थक चुका था उनको सुखाते, सुखाते
कभी सोचा था शायद एक बार वो मुस्कराएगी मेरे लिए
एक वो मुस्कराहट जो मैं खोजता रहा था उसमे
और कुछ भी तो नहीं माँगा था मैंने उससे, कुछ नहीं
सिवाय एक हंसी के, जिसका मैने बहुत इन्तजार किया
जिसको पाने के लिए मैने क्या, क्या नहीं किया
रेत मे भटकते उस प्यासे हिरन की तरह
दिन, रात मैं खोजता रहा था जिनको
हाँ, आज मैने देखा वही मुस्कराहट, वही हंसी
पर वो मेरे लिए नहीं था, किसी और के लिए था
बहुत पहले वो किसी और की हो चुकी थी
आज मैं खुश हूँ उसको हँसते हुए देख कर
पर थोडा दुखी भी हूँ इस कमी के एहसास से
उसकी मुस्कराहट को पा न सकने से ख्याल से नहीं
बल्कि जिंदगी में किसी को एक मुस्कराहट न दे सकने के कमी से

1 comment:

Jay said...

Wow, ye to me likhna chahta tha. Aapne likh di, Ultimate.

Touched the soul.